Thursday

जीवन सफ़र






ज़िन्दगी के सफ़र में अकेली चली,
हमसफ़र तुम न जाने कहाँ खो गए|
मुड़ के देखा तो सूनी डगर थी मगर,
इक अजब सी महक मेरी राहों में थी|
तेरे क़दमों की आहट फिज़ाओं में थी||

कस्में-वादे किये थे इन्हीं राहों में,
हमने नग्में सुने थे इन्हीं छाहों में|
तेरी पर्छायाँ तो मेरे साथ हैं,
पर तुम्हीं इस डगर में कहीं खो गए||

ये कैसा नशा मेरी साँसों में है,
जो तुझे मैं कभी भूल पाती नहीं|
ज़िन्दगी की अँधेरी डगर में तेरे,
प्यार की रौशनी झिलमिलाती रही||

तेरी बाँहों का बंधन, मेरे हमसफ़र,
सहारा बना है इस मझधार में|
ये कैसा अनोखा सा बंधन प्रिये,
जो नहीं टूट पाया है संसार मैं||

तू जहाँ भी कहीं है मेरे हमसफ़र,
मेरे स्वप्नों की छाया तेरे प्यार की|
चाहे कुछ भी करून, मैं कहीं भी रहूँ,
एक सिहरन सी है तेरे अहसास की||

तेरी साँसों की गर्मी मेरी सांस में,
तेरे प्राणों की ठंडक मेरे प्राण में|
जहां की नज़र से भले तुम छुपो,
पर हो मेरी नज़र के सदा सामने||
- on A.I.R - Sept 10th, 1996
(Papa had expired in July '94, just a few months short of what would have been their 50th wedding anniversary)

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