हम आये अकेले, औ' तनहा चले हैं|
ये कैसा निराला चलन है यहाँ का,
हम आये हैं रोते, रुला कर चले हैं||
ये कैसा अनोखा अजब सा है मेला,
न कोई है तेरा, न तू है किसी का|
मगर फिर भी लगता है, हम सब बंधे हैं
किसी डोर से है ये रिश्ता सभी का ||
ये लगता है जैसे जहां है हमारा,
हम्हीं ने ज़मीं आस्मां है बनाए|
हमारे ही दम से है रौनक यहाँ की,
हम्हीं ने यहाँ चाँद तारे सजाये||
हमारे ही दम से है ठंडी हवाएं
खिली शोख कलियाँ, चमन मुस्कुराये|
ये कोयल की मस्ती, पपीहे के नगमे,
यहीं बादलों ने ही मोती लुटाये|| ...
ये समझे थे हम हैं खुदा इस ज़मीं के,
न समझे की हम हैं मुसाफिर यहाँ के|
हमारी निशानी हैं ये चाँद साँसें,
इन्ही के सहारे कारवां ज़िंदगी के||