Wednesday
नभ के दीप
हम हँसते है, तुम रोते हो,
हम झूम रहे तुम सोते हो.
यह जीवन चार घड़ी का है,
क्यूँ अनजाने में खोते हो...
आओ उतरो उस मंजिल से,
जग में आओ,कुछ काम करो.
धरती के दीपक बन कर तुम,
हंस-हंस निज तन बलिदान करो...
यदि तुमने जल कर एक कुटी
को भी प्रकाश की रेखा दी.
तो कितने प्राणों में तुमने,
जीवन की ज्योति झलका दी...
...आओ उतरो उस मंजिल से,
जग में आओ,कुछ काम करो.
***
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1 comment:
beautiful
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