Monday

...अकेली रात कट जाती



इसी जलने जलाने में, हमारी रात कट जाती,
सखी, चंदा सुलाने में, हमारी रात कट जाती।

कभी आती है तेरी याद,
दिल में कसक सी उठती।
सुलगती आग सीने में,
ज्यों घन में दामिनी चमकी ॥
चमकता चाँद जब नभ में
धरा क्यूँ आग सी जलती।
सखी, पीड़ा बुझाने में हमारी रात कट जाती,
हमें चंदा सुलाने में अकेली रात कट जाती॥

ये सूनी सी अजब घड़ियाँ,
तुम्हारे गीत मनमाने।
कोई समझे तो क्या समझे
क्यूँ जल जाते हैं परवाने॥
ये कैसी रीत, कैसी प्रीत,
कैसे गीत अनजाने।
कि जिन गीतों को गाने में हमारी रात कट जाती,
हमें चंदा सुलाने में अकेली रात कट जाती॥

बुझी आशा धड़कता दिल लिए,
मैं द्वार खोले हूँ।
लिए नैय्या किनारे पर
खड़ी, पतवार खोले हूँ॥

भंवर सा घूमता है मन,
कहीं थक कर न सो जाऊं
तेरे आने ही जाने में, ये सारी रात कट जाती,
हमें चंदा सुलाने में हमारी रात कट जाती॥

कभी आती सखी, पूनम,
मेरे हर अंग में सोना।
धरा पर हूँ पड़ी रहती,
लिखा है भाग्य में रोना॥
यह कैसी प्रीत दीवानी
चकोरी चाँद को देखे।
इसे राका रिझाने में, नवेली रात कट जाती।
सखी, चंदा सुलाने में हमारी रात कट जाती॥

कहूं क्या ये तेरी पीड़ा,
बड़ी चंचल हठीली है।
ये मेरे प्यार की दौलत
ही अब दिल की सहेली है॥
कभी जब तू नहीं मिलता
यही तो साथ खेली है।
इसे झूला झुलाने में, हमारी रात कट जाती।
सखी, चंदा सुलाने में हमारी रात कट जाती॥

(AIR से ७.५.९५ को प्रसारित)

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