Monday

मिलन का इसमें कौन कसूर...


धरती से आकाश, गगन से धरती कितनी दूर,
मिलते नहीं विचार, मिलन का इसमें कौन कसूर...

सरिता नें सागर को कर दी
अर्पित रूप जवानी।
किन्तु ना हो पाया सागर का
खारा मीठा पानी।
तन से कितने पास मगर हैं मन से कितने दूर,
मिलते नहीं विचार, मिलन का इसमें कौन कसूर...

नदिया के दो कूल किनारे,
साथ-साथ चलते रहते हैं।
एक राह है, एक है मंजिल,
अलग-अलग लेकिन रहते हैं।
मन से दोनों साथ-साथ हैं, तन से कितने दूर,
मिलते नहीं विचार, मिलन का इसमें कौन कसूर...

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